Search
Close this search box.

आइये जानें अयोध्या से 374 साल पहले लाए गए भगवान रघुनाथ की मूर्ति से जुड़े इतिहास के बारे में

आस्था अपडेट (कुल्लू अपडेट ) 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में खुशी की लहर है। रामलला की जन्मभूमि अयोध्या से देवभूमि कुल्लू का 374 साल पुराना रिश्ता है। सन 1650 को भगवान रघुनाथ की मूर्ति को अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। 1660 को आश्विन की दशमी तिथि को कुल्लू पहुंची और यहां पर भगवान रघुनाथ की अध्यक्षता में देवी-देवताओं का बड़ा यज्ञ हुआ।

इसी यज्ञ को कुल्लू दशहरा के रूप में मनाया जाने लगा। दरअसल 1650 में कुल्लू के तत्कालीन राजा जगत सिंह को दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं। जब राजा ने ब्राह्मण से मोती मांगे तो राजा के डर से दुर्गादत्त ने खुद को अग्नि में जलाकर समाप्त कर दिया था। छानबीन करने पर पाया कि उसके पास मोती नहीं थे और राजा को रोग लग गया।
ब्रह्म हत्या के निवारण को राजगुरु तारानाथ ने सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा। पथहारी बाबा ने सुझाव दिया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू लाया जाए तो राजा रोग मुक्त हो सकता है। पथहारी बाबा ने यह काम अपने शिष्य दामोदर दास को दिया। एक दिन मौका पाकर वह राम-सीता की मूर्ति को उठाकर हरिद्वार होकर मकराहड़ पहुंचा।

मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पिया और राजा का रोग खत्म हो गया। जिला देवी-देवता कारदार संघ के अध्यक्ष दोतराम ठाकुर कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंपा और खुद भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए। अब इस काम को महेश्वर सिंह निभा रहे हैं।

Kullu Update
Author: Kullu Update

यह भी पढ़ें

टॉप स्टोरीज