कुल्लू अपडेट , किसी भी राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण और लोगों की आजीविका का मसला शामिल नहीं किया है, जबकि यह मसला काफी गंभीर है। यह बात शनिवार को कुल्लू में आयोजित एक प्रेस वार्ता में हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह ने कही। कहा कि पिछले 10 सालाें से केंद्र सरकार ने पर्यावरण कानून को बदलने की कोशिश की हैकेंद्र सरकार ने एफसीए में भी संशोधन कर दिया। इस कारण अब पर्यावरण से छेड़छाड़ और भी बढ़ेगी। कोई भी परियोजना आएगी तो पहाड़ों में तोड़फोड़ शुरू कर दी जाएगी। हाल ही में मुल्थान की तबाही देख चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए हिमालय नीति बननी चाहिए, अन्यथा आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय में पानी सूख जाएगा तो देशभर में अन्न का संकट पैदा होगा। नदियों में बने बांधों की सुरक्षा का निरीक्षण होना चाहिए, अन्यथा ये टूटकर तबाही का कारण बन सकते हैं।
जल संरक्षण तथा लोक मित्र मिश्रित वनों के उपार्जन के लिए जन सहभागिता आधारित नीति बनाई जाए व प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्यागों पर पूर्ण रोक लगे।
प्लास्टिक व कचरा प्रबंधन पर ठोस नीति अपनाई जाए। राजस्व कानून की धारा 118 को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। वन अधिकार कानून को लागू किया जाए।
उन्होंने कहा कि भूमि अधिगृहण कानून के मुताविक परियोजनाओं से प्रभावितों को 4 गुना मुआवजा को दिया जाए।
- ट्रांसमिशन लाइनों के लिए कानून की जरूरत सरकारी व प्राइवेट कंपनियों द्वारा बिछाई गई बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे खतरे में आने वाली प्रभावित भूमि, रिहायशी घरों, मवेशी खानों का कानूनन अधिग्रहण किया जाना चाहिए और प्रभावितों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को बिजली ट्रांसमिशन के लिए नया कानून लाने की जरूरत है।
- ऐसी हो राष्ट्रीय विकास नीति
हिमालयी पर्यावरण संरक्षण, टिकाऊ विकास व राष्ट्रीय हित को ध्यान में रख कर जन-सहभागिता से हिमालयी विकास नीति बनाई जाए। पहाड़ के परंपरागत निवासियों व जैव विविधता का संरक्षण हो गेर हिमालय अवादियों को यहाँ न बसाया जाए। पलायन को रोकने के लिए यहां सम्मान जनक रोजगार के साधन खड़े किये जाएं।
- केंद्र सरकार ने बदले कानून उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने वन भूमि हस्तांतरण के प्रावधानों को भी बदलने की कोशिश की हैं, तथा देश के सीमा क्षत्रों में बड़ी परियोजनाओं को 100 किलोमीटर तक वन संरक्षण अधिनियम में छूट दी गई। इन बदलावों को निरस्त किया जाए।
- पर्यावरण संरक्षण के कानूनो को सख्त किया जाए
- इस दौरान अजीत राठौर, लाल चंद कटोच, शोभा राम, रजनीश शर्मा आदि मौजूद रहे।