कुल्लू अपडेट, इंस्टीट्यूट फॉर सोशल डेमोक्रेसी संस्थान दिल्ली द्वारा जिला कुल्लू की तीर्थन घाटी के बठाहड में स्थानीय लोगों के लिए 27 जुलाई से 29 जुलाई तक तीन दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह एक आवासीय कार्यशाला थी जिसमें यहां के करीब 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिसमें अधिकतर स्कूली छात्रा छात्राएं शामिल रहे। सोमवार को बठाहड़ में इस कार्यशाला का समापन हो गया है।
इस तीन दिवसीय कार्यशला में आईएसडी संगठन दिल्ली की ओर से हिमाचल के फील्ड कोऑर्डिनेटर तेज सिंह ठाकुर, पूर्ण चंद, मोहर सिंह और सुरिता ठाकुर आदि विशेष रूप से मौजूद रहे, जिन्होंने बखूबी तौर से इस आवासीय शिविर का संचालन करके प्रतिभागियों का ज्ञान वर्धन किया है। इस कार्यशाला में विभिन्न सत्रों के दौरान प्रतिभागियों ने अपनी अपनी स्थानीय साझी विरासत को चिन्हित किया और उनके बनने की प्रक्रिया व उपयोगिता भी समझी।
क्या है हमारी सांझी विरासतें-
सांझी मतलब सबकी और विरासतें जो हमें समाज का हिस्सा होने के नाते पीढ़ी दर पीढ़ी मिल रही है। हिमाचल प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां की संस्कृति, बोली भाषा, खानपान, पहनावा, हस्तशिल्प, खेती किसानी, लोकगीत, लोक नृत्य, प्राकृतिक संसाधन, जैव विविधता, अनूठी देव परंपराएं और रस्मो रिवाज हमें एक साझी विरासत के रूप में मिले हैं। इनमें से कुछ विरासतें अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है जबकि कुछ विरासतें अभी तक जीवन्त है।
सामाजिक लोकतन्त्र के लिए संस्थान संगठन दिल्ली से हिमाचल प्रदेश के फील्ड कोऑर्डिनेटर तेज सिंह ठाकुर ने बताया कि हमारी इन सांझी विरासतों को शांति सद्भाव और आपसी भाईचारा बनाए रखने के लिए बचाया जाना जरूरी है।
इन्होंने बताया कि कुछ सकारात्मक सांझी विरासतें समाज के हर संप्रदाय को आपस में जोड़े रखती है, जबकि कुछ नकारात्मक विरासतें समाज को तोड़ने का काम करती है जिसमें छुआछूत भी एक है। इन्होंने कहा कि सकारात्मक सांझी विरासतों के महत्व और उपयोगिता को देखते हुए इनके संरक्षण संवर्धन और मजबूती के लिए हम सभी को एकजुट होकर क्षेत्रीय स्तर पर सांझे प्रयास करने होंगे। अपने समाज को सही दिशा में लेकर जाना हम सबकी सांझी जिमेदारी है जिसके लिए भारतीय संविधान भी हमें रास्ता दिखाता है। इस दौरान सांझी विरासतों को तोड़ने वाले कारकों और शक्तियों पर भी चिंतन मंथन किया गया।
इस कार्यशाला में बतौर अतिथि वक्ता मौजूद रहे मोहर सिंह ठाकुर ने पर्यावरण से जुड़ी सांझी विरासतों के सरंक्षण, आजीविका, जहर मुक्त खेती, संस्कृति से जुड़ी सांझी विरासतों का हमारे जीवन पर प्रभाव और महत्व आदि विषयों पर प्रतिभागियों का ज्ञान वर्धन किया। इन्होंने
सामाजिक कुरीतियों बाल विवाह, महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियां, जाति प्रथा आदि विषयों पर भी अपने महत्त्वपूर्ण सुझाव और विचार रखे।
इन्होंने बताया कि इस दौरान प्रतिभागियों ने समाज में तनाव और टकराव पैदा करने वाले विभिन्न कारकों और ताकतों को जानने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही समुह चर्चा के माध्यम से तनाव और टकराव को रोकने के लिए सांझी विरासत से विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा परिचर्चा और मंथन हुआ। इस दौरान सांझी विरासतों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पर भी प्रतिभागियों ने ग्रुप वाइज अपनी अपनी प्रस्तुति पेश की है।
तीर्थन घाटी से आईएसडी संगठन के क्षेत्रीय कोऑर्डिनेटर पूर्ण चन्द ठाकुर ने बताया कि भारत में सामाजिक लोकतन्त्र के लिए संस्थान एक गैर सरकारी संगठन है जो सामाजिक, लोकतंत्र, समाजवाद और प्रगतिशील राजनीति जैसे मुद्दों पर कार्य करता है। इन्होंने बताया कि आईएसडी मानव विकास और मानवाधिकारों की गरिमा पर आधारित एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण का सपना देखता है।
पूर्ण चन्द ठाकुर ने बताया कि सांझी विरासतों का सही प्रयोग करके हम सामाजिक विकास और एकता में अपना योगदान कर सकते हैं। इन्होंने बताया कि समाज में अच्छी परंपरा को बढ़ावा देना चाहिए जबकि गलत परम्परा का विरोध करना चाहिए।